आनंद बाबा जी का जन्म धोराजी नामक गाँव में हुआ था ! उनके घर पर जब कोई साधु– संत पधारते थे तो वह उनका बड़ा आदर सत्कार किया करते थे ! एक दिन की बात है , संत आनंद जी शाम के वक़्त अपने नित्य नियमानुसार अतिथियों को भुने चने बाँटकर बैठे थे ! उस दिन उनके पास खुद के खाने के लिए कुछ भी नहीं बचा था लेकिन उन्हें इसकी कोई चिन्ता नहीं थी !
उसी समय भगवान् एक योगी के रूप में आकर पूंछने लगे कि आनंद राम किसका नाम है, जो सबको चने बांटता है ! आनंद जी बड़े विनम्र स्वर में बोले , हे दिव्य पुरुष, लोग इस सेवक को ही आनंद के नाम से पुकारते हैं ! आज आपने आनंद राम नाम से पुकारा है ! आप कहिए , इस दास के लिए क्या आज्ञा है ?
योगी बोले, मुझे भुने हुए चने चाहिए ! यह सुनकर आनंद जी उनके चरणों में गिरकर कहने लगे, महाराज, मेरे पास चने तो अब नहीं हैं ! मैं आपको और क्या दूँ ? इस पर योगीरूप धारी भगवान् ने कहा कि आनंद राम, देख तेरा पात्र तो चनों से भरा है ! यह सुनकर आनंद राम जी ने पात्र की तरफ देखा तो वह चनों से भरा हुआ था ! इससे गदगद होकर वह योगी के चरणों में गिर पड़े और दीक्षा के लिए याचना करने लगे ! उनकी सरलता और निष्ठा से प्रसन्न होकर भगवत्स्वरूप योगी ने उनके सिर पर अपना हाथ रखकर उनके द्वारा किये जाने वाले सभी कामों में राममंत्र का उपदेश दिया और बोले— आज से तेरा भंडार अक्षय होगा और तुम्हारे द्वारा हजारों प्राणियों का उद्धार होगा !
——– राम कुमार दीक्षित, पत्रकार, पुणे , महारास्ट्र !