अब धूप भूल जाइये , सूरज यहाँ नहीं ,
ऐसी ज़मी मिली है , जहाँ आसमाँ नहीं !
काग़ज़ पे रात अपनी सियाही बिछा गई ,
कोई लकीर तेरे मेरे दरमियाँ नहीं !
ये राज़ अब खुला तेरी नाराज़गी के बाद ,
तू मेहरबाँ नहीं , तो कोई मेहरबाँ नहीं !
दिल ने तुम्हारी याद में , सबको भुला दिया ,
इस ताक में चिराग़ है लेकिन धुँवा नहीं !
जा उसका नाम लिख दे , गुलाबों की शाख पर ,
फूलों के आस—- पास अगर तितलियाँ नहीं !
—— राम कुमार दीक्षित , पत्रकार , पुणे , महारास्ट्र !