” दिन जल्दी– जल्दी ढलता है “

दिन  जल्दी— जल्दी  ढलता   है   !

हो  जाए  न  पथ  में  रात  कहीं  ,

मंज़िल  भी  तो  है   दूर    नहीं  ,

यह  सोच  थका  दिन  का    पंथी

भी  जल्दी– जल्दी   चलता   है   !

दिन  जल्दी— जल्दी  ढलता  है   !!

 

बच्चे   प्रत्याशा   में  होंगे  ,

नींडो   से  झाँक   रहे   होंगे   ,

यह  ध्यान   परों  में  चिड़ियों  के

भरता  कितनी  चंचलता   है   !

दिन  जल्दी— जल्दी  ढलता   है   !

 

मुझसे  मिलने  को   कौन   विकल  ,

मैं  होऊं  किसके  हित   चंचल   ?

यह  प्रश्न  शिथिल  करता  पद  को  ,

भारत  उर   में  विह्वलता     है    !

दिन  जल्दी—- जल्दी  ढलता   है   !

——–   प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन

( संकलित  )

 

——–  राम  कुमार  दीक्षित , पत्रकार , पुणे , महारास्ट्र  !

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