करीब सवा सौ साल पहले की बात है ! एक भक्त इटावा से श्रीनाथ जी के दर्शन के लिए नाथद्वारा, राजस्थान जाने के लिए निकले ! चित्तौडगढ़ स्टेशन पर पहुंचे तो पाया कि उनका टिकट और सारा सामान गायब था ! वह जैसे तैसे मावली स्टेशन तक पहुँच गए ! अब आगे जाने के लिए उनके पास न तो पैसे थे और न ही कोई साधन ! वह पैदल ही श्रीनाथ जी के दर्शन के लिए निकल पड़े ! भक्त दिन भर के थके हुए थे और भूख प्यास भी सता रही थी !
कई कोस दूर चलने के बाद शाम के समय उन्हें धूनी रमाए बैठे एक संत मिले ! संत ने उनसे कहा , बच्चा कैसे भटक गए ? भक्त ने विनम्रता से कहा, अपरिचित मार्ग पर चलने से बड़े– बड़े भटक जाते हैं ! मैं तो इस मार्ग का अभिनव बटोही हूँ ! यह सुनकर संत खूब जोर से हँसे और कहा , अंधेरे में फिर भटक जाओगे ! अब रात यहीं पर बिताओ ! उजाला होने पर नाथद्वारा पहुँच जाओगे ! अब उस चट्टान पर जाकर लेट जाओ ! भक्त भूखे प्यासे और थके हुए थे !
चट्टान पर पहुँचते ही उनकी आँख लग गई ! सुबह नींद खुली, तो उन्होंने अपने आपको श्रीनाथ जी की शरण में पाया ! यह देखकर वह अचंभित हो गए ! तीन दिन तक खोजने पर भी उन्हें न तो वह चट्टान मिली और न ही संत की कुटिया ! भक्त ने यह बात नाथद्वारा में एक वामन नामक विद्वान को बताई , तो उन्होंने कहा, साधु के रूप में तुम्हें श्रीनाथ जी ने दर्शन दिये , तुम्हारी यात्रा सफल हो गई !
——- राम कुमार दीक्षित, पत्रकार, पुणे , महारास्ट्र !