मौत से ठन गई !
जूझने का मेरा इरादा न था ,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था !
रास्ता रोककर वह खड़ी हो गई ,
यों लगा ज़िंदगी से बड़ी हो गई !
मौत की उमर क्या है ? दो पल भी नहीं ,
ज़िंदगी सिलसिला , आज– कल की नहीं !
मैं जी भर जिया , मैं मन से मरूं ,
लौटकर आऊंगा कूच से क्यों डरूँ ?
तू दबे पाँव , चोरी– छिपे से न आ ,
सामने वार कर , फिर मुझे आज़मां !
मौत से बेखबर , ज़िंदगी का सफर ,
शाम हर सुरमई , रात बंशी का स्वर !
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये ,
आँधियों में जलाएं हैं , बुझते दिये !
आज झकझोरता तेज़ तूफान है ,
नाव भंवरों की बाँहों में मेहमान है !
पार पाने का क़ायम मगर हौसला ,
देख तेवर तूफ़ाँ का , तेवरी तन गई ,
मौत से ठन गई !
———- अटलबिहारी वाजपेयी
( संकलित )
——- राम कुमार दीक्षित, पत्रकार , पुणे , महारास्ट्र !