” परमात्मा ने बचाई पुरा जी की लाज “

मेवाड के अंतर्गत  भादसोडा गाँव में भक्त पुरा जी का जन्म हुआ था  ! किशोरावस्था में ही उन पर साधु– संगति का रंग चढ़ गया था  ! पुरा जी प्रतिदिन स्नान करके शालिग्राम जी की मूर्ति की पूजा किया करते थे  ! उनके घर पर आया हुआ कोई भी संत बिना प्रसाद पाए वापस नहीं जाता था  ! पुरा जी साधु– संतों व अतिथियों का यथेष्ट आदर– सत्कार करते थे  !

एक बार पुरा जी के घर में खाने को कुछ नहीं था  और द्वार पर करीब पचास संत ठीक प्रसाद पाने के समय आ गए  ! पुरा जी पर कर्ज़ बहुत हो चुका था  और महाजन एक पैसा भी देने को राजी नहीं था  ! दरवाजे पर संतों को देखकर पुरा जी चिन्ता में पड़ गए  ! वह एकांत में रो– रोकर भगवान् से प्रार्थना करने लगे— हे प्रभु  ! आज द्वार पर आए हुए संत भूखे लौटेंगे  ! घर में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे गिरवी रखकर उन्हें भोजन कराऊँ  ! प्रभु  , लाज रखना तुम्हारे हाथ में है  !

वह अभी प्रार्थना कर ही रहे थे कि बाहर से  ” पुरा भक्त की जय हो ”  की जयकार सुनाई पड़ी  ! पूंछने पर पत्नी बोली  , आपने ही तो महाजन के यहाँ से भोजन सामग्री साधुओं को दिलवाई है और उसके यहाँ गिरवी रखी हुई अपनी सारी चीजें  , आप छुड़ा लाएं हैं  ! अभी महाजन सब चीजें दे गया है  ! यह बात सुनते ही भक्त पुरा जी ने भगवान् को कोटि– कोटि धन्यवाद दिया  ! वह समझ गए कि मेरा रूप धारण कर भगवान् ने मेरी लाज बचाई है  ! इसके बाद उन्होंने महाजन के पास जाकर कहा कि  आप धन्य हैं  जिन्हें भगवान् के दर्शन हुए  !

 

——-  राम कुमार दीक्षित, पत्रकार, पुणे, महारास्ट्र  !

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *