यदि हम हर परिस्थिति में अपने को संयमित रख सकते हैं तो यह बड़ी बात है और ऐसे ही व्यक्ति को शिक्षित कह सकते हैं ! इसके विपरीत अगर मन में उठने वाली उत्तेजनाओं और आवेगों पर यदि हम कंट्रोल नहीं कर सकते तो यह असंयमित जीवन है ! आवेगों को नहीं रोक पाना नासमझी है ! आवेग में आदमी इतना उत्तेजित हो जाता है कि अपने आप का आपा खो देता है ! आवेग में परिवार के परिवार उजड़े जा रहे हैं ! घटना घट जाने के बाद , पश्चाताप करने से कोई फायदा नहीं है !
समाचार पत्रों में हम प्रतिदिन पढ़ते हैं कि किसी ने क्रोध के आवेश में किसी को बुरी तरह से घायल कर दिया अथवा किसी को गोली मार दी और बाद में इस कृत्य का मूल्य चुकाने के लिए उसको अपनी खुशहाल ज़िंदगी और अपनी आज़ादी से हाथ धोना पड़ा ! किसी जेल में जाकर वहाँ सड़ रहे कैदियों से पूंछा जाए , सुधार गृह में जाकर अपराधी बालकों से जानकारी हासिल की जाए तो वे सब यही उत्तर देंगे कि जबरदस्त क्रोध के आवेग में उनसे यह घृणित कार्य हो गया !
क्रोध तो कुछ देर के लिए ही टिका था लेकिन उस क्रोध के आवेग ने संपूर्ण जीवन को ही बरबाद कर दिया और चरित्र पर हमेशा के लिए धब्बा लग गया ! मनुष्य मात्र के जीवन का लक्ष्य यह होना चाहिए कि वह प्रकाश के आलोक की ओर गतिमान हो, किंतु जो क्रोध से ग्रस्त हो जाते हैं , वे अंधकार की तरफ यात्रा रत हो जाते हैं ! ऐसे लोगों का पूरा जीवन पश्चाताप में बीतता है ! इसलिए हर सम्भव प्रयास करके क्रोध पर नियंत्रण करना चाहिए जिससे यह अनमोल जीवन पश्चाताप की अग्नि में न झुलसे और यह जीवन परिवार एवं समाज के काम आ सके !
——- राम कुमार दीक्षित, पत्रकार, पुणे, महारास्ट्र !