अयोध्या में श्री राम सबको बड़े संक्षेप में बड़ी गहरी बात समझा रहे थे ! सब कुछ सुनने के बाद लोगों ने कहा ” जननी जनक गुर बंधु हमारे , कृपा निधान प्रान ते प्यारे ” ! यानी हे कृपा निधान , आप हमारे माता, पिता, गुरु, भाई सब कुछ हैं और प्राणों से भी अधिक प्रिय हैं ! परमात्मा और प्राण का बड़ा गहरा संबंध है ! वैसे प्राण शब्द के कई अर्थ हैं ! हमें यदि परमात्मा का और प्यारा बनना है और उसकी अनुभूति करनी है तो हमें अपने प्राणों पर काम करना होगा ! इसको प्राणायाम कहते हैं .
आती– जाती सांस पर होश में रहना ही प्राणायाम ! सांस तो हम ले ही रहे हैं , पर अभी जागरूक नहीं हैं ! सांस को निरंतर देखना परमात्मा को प्राणों से प्यारा बनाना है क्यों कि जब प्राणायाम करते हैं तो मन नियंत्रण में रहता है ! मन को संसार भी कहा गया है ! प्राणायाम से मन नियंत्रण में आता है तो हमें समझ में आता है कि संसार से हमें कहीं भागकर जाना नहीं है ! संसार में रहकर ही परमात्मा को प्राप्त करना है ! यदि हमें संसार का पता चल जाए जो कि मन के नियंत्रण से होगा तो परमात्मा और उसकी अनुभूति बड़ी आसान हो जायेगी ! बड़े ही अनमोल बचन कहे गए हैं कि ” श्वांस — श्वांस निज नाम जपो , वृथा श्वांस मत खोए ! ना जाने इन श्वांस को फिर आवन होए ना होए !
——– राम कुमार दीक्षित, पत्रकार, पुणे, महारास्ट्र !