जुदाई की रातों की बारिश में भीगे
सुनो, तुम्हारी यादों की बारिश में भीगे !
सबने सावन की बारिश का जश्न किया ,
हम अपनी आँखों की बारिश में भीगे !
तुम भी भीगे , मैं भी भीगा , सब भीगे ,
हम उनके वादों की बारिश में भीगे !
सच्चाई तो किसी को मालूम नहीं थी ,
लोग तो अफवाहों की बारिश में भीगे !
हम तो थे सुरक्षित उन्हीं के साये में ,
पेड़ जो अंगारों की बारिश में भीगे !
किलक रहे थे , जो नन्हें मुन्ने ,
उनकी मुस्कानों की बारिश में भीगे !
——-राम कुमार दीक्षित , पत्रकार , पुणे , महारास्ट्र !