” छाँव भी जरूरी है “

छाँव  भी  जरूरी  है

जीते  जी  सीधा  साधे  चलना  ठीक  नहीं

ऊबड़  खाबड़  पड़ाव  भी  जरूरी  है

तैरते  तैरते  बाजू  पूँछेगे

एक  पल  के  लिए  नाव  भी  जरूरी  है  ,

बदलाव  भी  जरूरी  है

ये  घाव  भी  जरूरी  है  ,

इतनी  धूप  नहीं  ,

थोड़ी  छाँव  भी  जरूरी  है… !

शहर  की  हद  से  निकले  तो  ,

गाँव– गाँव  चले  गए…

कुछ  याद  मेरे  संग  ,

पाँव–  पाँव  चले  गए…!

सफर  जो  धूप  का  किया  तो  ,

तजुर्बा  हुआ…

वो  ज़िंदगी  ही  जो  ,

छाँव– छाँव  चली  …!

 

——–   राम  कुमार  दीक्षित  , पत्रकार, पुणे, महारास्ट्र  !

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