गोरा जी का जन्म तेराढोकि नामक स्थान पर हुआ था ! इन्हें सभी लोग चाचा कहा करते थे ! गोरा जी , बड़े ही विरक्त, दृढ निश्चयी और ज्ञानी भक्त थे ! एक बार काशी की यात्रा से लौटते हुए ज्ञानेश्वर– नामदेव आदि संत गोरा जी के यहाँ ठहरे ! सभी संत एक साथ बैठे हुए थे ! पास ही एक थापी पड़ी हुई थी ! उस पर मुक्ताबायी की दृष्टि पड़ी , उन्होंने पूंछा—- चाचा जी , यह क्या चीज है ? गोरा जी ने उत्तर दिया , यह थापी है ! इससे मिट्टी के घड़े को ठोककर देखा जाता है कि घडा कच्चा है या पक्का है !
मुक्ताबाई ने कहा, हम मनुष्य भी तो घड़े ही हैं , इससे क्या हम लोगों को भी कच्चाई— पक्कायी मालूम हो सकती है ? गोरा जी बोले , क्यों नहीं , उन्होंने थापी उठाई और एक– एक संत के सिर पर थपकर देखने लगे ! और संत तो यह कौतुक देखने लगे , पर नामदेव बिगड़े , गोरा जी जब उनके पास गए तो नामदेव को बुरा लगा ! गोरा जी ने उनके भी सिर पर थापी थपी और बोले, सभी संतों में यही घड़ा कच्चा है ! आगे बोले , नामदेव तुम भक्त हो पर अभी तुम्हारा अहंकार नहीं गया ! जब तक गुरु की शरण में नहीं जाओगे ! तब तक ऐसे ही कच्चे रहोगे ! नामदेव जी दुःखी हुए ! उन्होंने भगवान् विट्ठल को अपना दुख सुनाया ! भगवान् ने कहा, यह सच है कि गुरु की शरण में जाए बिना, कच्चे ही रहोगे ! हम तुम्हारे साथ सदा हैं लेकिन तुम्हें देहधारी मनुष्य को गुरु मानकर उनके चरणों में अपना अहंकार लीन करना होगा , तभी तुम असली भक्त कहलाने के अधिकारी होगे !
—— राम कुमार दीक्षित, पत्रकार, पुणे, महारास्ट्र !