अक्सर आदमी में देते समय दातापन का अहंकार आ जाता है ! वह समझता है कि मैं दे रहा हूँ ! मैं बड़ा सक्षम हूँ और यह लेने वाला दीन– हीन है ! अगर तुम किसी की सहायता किसी भी रूप में कर रहे हो तो समझ लेना कि परमात्मा ही करवा रहा है ! क्यों कि सबसे बड़ा दाता तो वही है ! अगर वह न देता तो आप कहाँ से देते ! हम जब संसार में आये थे तो क्या लेकर आये थे और जायेंगे तो क्या लेकर जायेंगे ! इसलिए किसी को देते समय अपने घमंड और अपने अहंकार को कभी भी न जताना ! अपने एहसान का अहसास कभी मत करना बल्कि परमात्मा को धन्यवाद देना कि उसने हमें इस लायक बनाया है और प्रार्थना करते रहना कि वह हमें इस लायक बनाये रखे ! किंतु एक बार भी अगर देते समय बोल दिया या जता दिया कि मैं दे रहा हूँ तो दातावाला भाव चला जायेगा और भिखारीपन सामने प्रकट हो जायेगा !
संत तिरुवल्लुर के ये शब्द हमेशा याद रखना कि हे इंसान ! जब तेरे हाथ में रोटी का टुकडा हो तो उसे खाने से पहले एक बार ध्यान से जरूर देखना और स्वयं से पूंछना कि यह रोटी तूने कमाई कैसे है ! इस रोटी में किसी बेगुनाह का खून तो नहीं लगा है ! किसी के बच्चे की आँख के आँसू या किसी की आह तो इससे नहीं जुड़ी है ! इस तरह से जब हम अपने ऊपर ध्यान रखकर चलेंगे तो हमारे अन्दर दिव्यता आती जायेगी और हम परमात्मा के लाडले बनने लगेंगे ! उसके गुण हमारे भीतर भी झलकने लगेंगे ! फिर आप दूसरों को देने का एहसास नहीं कराओगे ! आपको आत्मा की अनुभूति होने लगेगी ! उसके होने का आभास होने लगेगा कि देने वाला एक ही है और लेने वाले अनेक ! हमारा पात्र छोटा पड़ सकता है लेकिन देने वाले के यहाँ कोई कमी नहीं है ! परमात्मा की हर कृपा को सिर झुकाकर ही प्राप्त करना चाहिए ! उसकी कृपा अनंत है क्यों कि कृपा करने वाला भी अनादि और अखंड है !
——– राम कुमार दीक्षित, पत्रकार , पुणे , महारास्ट्र !