” स्वयं को परमात्मा से जोड़ने पर ही शान्ति सम्भव “

देखने में आता है कि आदमी अपना मकान बना लेता है तो अपने आपको बड़ा संतुष्ट समझता है कि अब कुछ और नहीं चाहिए  ! अपना भी एक अदद मकान बन गया  ! कब तक किराये के मकान में रहते  ! व्यक्ति ने अपनी कार खरीद ली और कहता और कुछ नहीं चाहिए  ! साहब  , अपनी भी गाड़ी हो गई  ! अब तो आनंद ही आनंद है  ! विवाह के बाद दो बच्चे हो गए  , एक लड़का और एक लड़की  ! लो अब फेमिली पूरी हो गई  ! अब तो जीवन में बड़ी संतुष्टि है  ! अब चैन की बंशी बजायेंगे  लेकिन संसार में बड़ी विचित्रता देखने को मिलती है  ! जैसे ही हमारे पड़ोस में कोई नया मकान  बनाता है  ! हमारा मकान हमें छोटा लगने लगता है  !

वक्त कहता है कि हमारा मकान ठीक है  , पर बराबर वाले का आर्किटेक्ट बढ़िया था  ! हमने जरा जल्दबाज़ी कर दी  ! हम भी थोड़ा ठहर जाते तो अच्छा रहता  ! हो गई अन्दर बेचैनी  ! मन अशांत  रहने लगा  !  कार हमारी ठीक — ठाक थी  , पर जैसी पड़ोसी ने नई कार खरीदी  तो हमें हमारी कार पुरानी लगने लगती है  ! उसने नये माडल की लेटेस्ट कार ले ली  ! अब हमारी कार तो उसकी कार के आगे कुछ भी नहीं  ! अन्दर ही अन्दर जलने भुनने लगता है   ! अपने बच्चों की तुलना पड़ोसी के बच्चों से करने लगता है  ! उसके बच्चे बड़े आज्ञाकारी हैं,  स्मार्ट हैं  , पढाई में भी होशियार हैं  ! वे ही सब चीजें जो संतुष्टि दे रही थी  ! अब उनसे आदमी असंतुष्ट हो जाता है  !

व्यक्ति अन्दर ही अन्दर सुलगने लगता है  ! एक अजीब सी बेचैनी और खलबली मची रहती है  !  कारण क्या है  ?  सीधी सी बात है  ! संसार की चीजों से कभी संतुष्टि नहीं मिलती है  ! कभी  शांति  , चैन, आनंद मिलता ही नहीं  ! यह सब जब मिलेगा  , जब हमारा चित्त शांत होगा, निर्मल होगा और एकाग्र होकर परमात्मा के चरणों से जुड़ जायेगा  ! जब हम अपने आपको परमात्मा से जोड़ लेंगे, तभी हमें जीवन में शांति मिलेगी  !

 

———- राम कुमार दीक्षित, पत्रकार, पुणे, महारास्ट्र  !

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