बेला आज बेहद खुश थी, क्यों कि उनके पति डॉक्टर राम को अदिति फाउंडेशन की ओर से समाज सेवा के लिए पुरस्कार मिलने वाला था ! वो दोनों जाने के लिए फटाफट तैयार होने लगे ! इसी बीच घंटी बजी तो देखा दरवाजे पर एक बूढा आदमी खडा है — बेटा कल से भूखा हूँ ! दो रोटी मिल जाती ! बूढ़े पर दया करो ! ‘ भले चंगे तो लग रहे हो ! वैसे भी हमारे पास टाईम नहीं है, कहते हुए राम ने दरवाजा बन्द कर दिया ! वह घर से गाड़ी लेकर निकले ही थे कि देखा कि रास्ता भीड़ के कारण जाम है ! डॉक्टर राम ने एक युवक से पूंछा — क्यों क्या बात है ? ये जाम क्यों लगा है ?
युवक बोला, साब , एक बूढा आदमी बेहोश हो कर गिर गया है ! बाबू जी , आप इसको अपनी गाड़ी से अस्पताल तक पहुंचा देंगे क्या ? युवक ने कहा ! डॉ. राम बोले , ” मेरी गाड़ी को क्या तुमने एम्बुलेंस समझ रखा है ? ये लो दस रुपये और इसे रिक्शा करके ले जाओ ! युवक ने कार की खिड़की से दस का नोट अन्दर फेंकते हुए कहा , अरे गाड़ी वाले बाबू जी ! मेरे पास इससे ज्यादा रुपये हैं ! इसे अपने पास ही रख लो ! आपकी गाड़ी में पेट्रोल भरवाने के काम आयेंगे !
बेला ने कार का शीशा बन्द करते हुए कहा — तुम भी राम, न जाने क्यों इन छोटे लोगों के मुँह लगते हो ! हम वैसे भी पहले से लेट हो चुके हैं ! डॉ राम ने गाड़ी स्टार्ट की और कुछ ही देर में कार्यक्रम में पहुँच गए ! समाज सेवा में विशिष्ट योगदान के लिए डॉ राम के नाम की घोषणा होते ही पूरा पंडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा ! सम्मान पट्टिका राम के हाथों में थी ! उन्हें पहले भी कई पुरस्कार मिले थे , लेकिन आज सम्मान पट्टिका संभालते हुए उनके हाथ काँप रहे थे !
——— राम कुमार दीक्षित, पत्रकार, पुणे , महारास्ट्र !