निरंतर नाम– धन की विशेषता वाले अपने आप को मालामाल मानते हैं ! अपने आप को भरा– भरा मानते हैं ! इसलिए फिर कोई दूरियाँ बाकी नहीं , फिर कोई टकराव बाकी नहीं ! जितने भी टकराव, जितनी भी दूरियाँ आज संसार में हमें देखने को मिलती हैं , इसका कारण है कि हम हमेशा पदार्थों को विशेषता देते हैं ! इस राम रतन धन के मीरा के भजन हम दिन रात गाते हैं ! जिस मीरा ने इस राम– नाम को विशेषता दी ! उसने दुनियावी दौलत को विशेषता नहीं दी थी !
मीरा के लिए क्या मुश्किल थी ! वह राज घराने में एक राजा के घर पैदा हुई ! एक ही राजा के साथ संबंध बना तो उसको क्या मुश्किल था, सब कुछ तो प्राप्त था ! लेकिन विशेषता उन पदार्थों को देने को तैयार नहीं ! विशेषता राम रतन धन को दे रही है , इसलिए मीरा तृप्त है , संतुष्ट है ! और इसी तृप्ति की वजह से वह कभी झगड़ नहीं सकती और इसकी वजह से एक दूसरे के बीच कभी दरारें नहीं होंगी ! निरंतर वहाँ पर प्यार होगा , सहजता होगी , संतोष होगा, धीरज होगा ! कोई उतवालापन नहीं होगा , कोई लोभ नहीं होगा ! कोई इसके कारण टकराव नहीं होगा ! जो आज हमें संसार में देखने को मिल रहा है ! आप महाभारत का जिक्र सुनते हैं ! कौरवों का जिक्र सुनते हैं कि कहाँ पर भगवान् श्री कृष्ण यह समझा रहे हैं कौरवों को कि इतना लोभ ठीक नहीं , केवल पांच गाँव पांडवों को दे दो , छठा भी नहीं , केवल पांच गाँव एक– एक भाई को दे दो ! कौरवों ने श्री कृष्ण की बात नहीं मानी और महाभारत हुआ ! इससे हमें भी यही सीख मिलती है कि हम लोग भी निरंतर परमात्मा का स्मरण करते रहें और दुनिया के मायावी जंजालों से अपने को बचाते रहें !
——- राम कुमार दीक्षित, पत्रकार, पुणे , महारास्ट्र !