” नमक का कर्ज़ “

शाम का समय था  ! कस्बे के बाज़ार में चहल– पहल थी  ! कोई आनंद से  खरीददारी कर रहा था  ! कोई बाज़ार आ रहा था  ! कोई थैला लिए वापस जा रहा था  ! इसी बीच  बाज़ार की तरफ आता हुआ एक फटेहाल भिखारी अचानक बंदरों का निशाना बन गया  ! उसका झोला खींचकर बन्दर उस पर हमला भी करने लगे  !

आसपास बहुत से लोग थे, मगर सब तमाशा देख रहे थे  ! कोई इतना भी कोशिश नहीं कर रहा था कि बन्दर उस फटेहाल भिखारी को छोड़ दें  !  कुछ तो इतने निर्लज्ज हो रहे थे कि अपना मोबाईल लेकर वीडियो बनाने में जुट गये थे  !  तभी दो कुत्ते भौंकते हुए आये  ! भिखारी के पास आकर बंदरों पर गुर्राने लगे  ! कुत्तों का यह रूप देख  बंदर डरकर भाग निकले  !

लोगों को समझ नहीं आया कि अचानक यह क्या हुआ  !  बाद में कुछ लोगों को एहसास हुआ ! उन्हें याद आया कि यह भिखारी रोज अपने झोले से एक– दो टुकड़े अपनी भीख  की रोटी के इन कुत्तों को भी प्रेम से खिलाता है  ! बेजुबान कहलाने वाला जानवर आदमी से अधिक वफादार और करुणामय है  ! छोटे से किये गए उपकार को भी याद रखता है  ! आज बाज़ार में सबने यह साफ– साफ देख लिया था  !  इस घटना से हमें यही सीख मिलती है कि किसी के द्वारा किये गए उपकार को कभी भी नहीं भूलना चाहिए और अवसर आने पर उपकार करने वाले की भरपूर मदद करनी चाहिए  और उनका सरंक्षण करना चाहिए  !

 

——–  राम कुमार दीक्षित, पत्रकार, पुणे, महारास्ट्र  !

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