जीवन के संघर्ष और आँधियों से दुःखी एक नाविक जहाज से उतरकर बाहर आया ! समुद्र के मध्य अडिग और अविचलित चट्टान की स्वच्छता को देखकर उसको कुछ शांति मिली ! वह थोड़ा आगे बढ़ा और एक टेकरी पर खडा होकर चारों ओर द्रष्टिपात करने लगा ! उसने देखा समुद्र की ऊँची तरंगे चारों ओर से चट्टान पर निरंतर आघात कर रही हैं तो भी चट्टान के मन में न रोष है और न विद्वेष ! संघर्षपूर्ण जीवन पाकर भी उसे कोई ऊब और उत्तेजना नहीं है ! मरने की भी उसने कभी इच्छा नहीं की !
यह देखकर नाविक का हृदय श्रद्धा से भर गया ! उसने चट्टान से पूंछा, तुम पर चारों ओर से आघात लग रहे हैं , फिर भी तुम निराश नहीं हो चट्टान ! तब चट्टान की आत्मा धीरे से बोली, तात ! निराशा और मृत्यु दोनों एक ही वस्तु के उभयपृष्ठ हैं ! हम निराश हो गए होते तो एक क्षण ही सही दूर से आये अतिथियों को विश्राम देने, उनका स्वागत करने से वंचित रह जाते ! नाविक का मन एक चमकती हुई प्रेरणा से भर गया ! जीवन में कितने भी संघर्ष आयें , अब मैं चट्टान की तरह अडिग रहकर जीवन जियूँगा ताकि हमारी न सही, भविष्य में आने वाली पीढी और मानवता के आदर्शों की रक्षा हो सके ! इसलिए जीवन में संघर्षों से कभी भी नहीं घबराना चाहिए और निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए !
——– राम कुमार दीक्षित, पत्रकार, पुणे, महारास्ट्र !