” पशुता और दिव्यता “

शब्द हमारी सम्पदा है. इसका उपयोग सोच– समझकर ही करना चाहिए  . शब्दों का बर्ताव फिज़ूल में बरबाद कभी नहीं करना चाहिए . जो लोग  ज्यादा बोलते हैं, उन्हें कोई नहीं सुनता  . जो लोग कम बोलते हैं, उन्हें हर कोई सुनता है  . कम बोलिये, काम का बोलिये  . मनुष्य में पशुता और दिव्यता, ये दो शक्तियाँ निवास करती हैं  . मनुष्य को गिरना नहीं है बल्कि ऊपर उठना है. मनुष्य ऊपर उठे तो देवता हो सकता है और नीचे गिरे तो पशु हो सकता है  !

आज को सफल बनाओ, कल अपने आप ही सफल हो जायेगा  . जन्म को सुधारो, मृत्यु अपने आप ही सुधर जायेगी  .  जीवन का गणित कुछ उल्टा है. जीवन के गणित में वर्तमान को सुधारो तो भविष्य सुधरता है और जीवन को सुधारो तो मृत्यु सुधरती है  ! संसारी और संत में  बस इतना ही अंतर है कि संत आज को सफल बनाने में व्यस्त है और संसारी कल को सफल बनाने में मस्त है  . जवान और बुजुर्गों के लिए एक नसीहत है  . अगर आप  जवान हैं तो आप अपने क्रोध को धीमा ही रखिये, नहीं तो आपका कैरियर चौपट हो जायेगा  और यदि आप बुजुर्ग हैं तो क्रोध करना एकदम बंद कर  दीजिये वरना आपका बुढ़ापा बिगड़ जायेगा  . क्रोध के तेवर कम करना है तो चुप रहने की आदत डालिए  . बहुत आनंद आयेगा. क्रोधी थोड़ी देर में क्रोध करके  अपने आप  ढीला पड़ जायेगा .

 

——–  राम कुमार दीक्षित, पत्रकार, पुणे, महारास्ट्र  .

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