” चलो दूर तक अजनबी रास्तों पर पैदल चलें “

अजनबी रास्तों पर

पैदल चलें

कुछ न कहें

अपनी– अपनी तन्हाइयाँ लिए

सवालों के दायरे से निकलकर

रिवाज़ों की सरहदों के परे

हम यूँ ही साथ चलते रहें

कुछ न कहें

चलें दूर तक

तुम अपने माजी का

कोई ज़िक्र न छेड़ो

मैं भूली हुई

कोई नज़्म न दोहराऊँ

तुम कौन हो

मैं क्या हूँ

इन सब बातों को

बस, रहने दें

चलो दूर तक

अजनबी रास्तों पर पैदल चलें !!

(संकलित )

—- राम कुमार दीक्षित, पत्रकार !

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