तेरी गोद में सोऊँ ,
तेरा अंचल पकड़– पकड़कर
फिरूं सदा माँ ! तेरे साथ ,
कभी न छोड़ूँ तेरा हाथ !
बड़ा बनाकर पहले हमको
तू पीछे छलती है मात !
हाथ पकड़ फिर सदा हमारे
साथ नहीं फिरती दिन—- रात !
अपने कर से खिला , धुला मुख ,
धूल पोंछ , सज्जित कर गात् ,
थमा खिलौने , नहीं सुनाती
हमें सुखद परियों की बात !
ऐसी बड़ी न होऊं मैं
तेरा स्नेह न खोऊँ मैं ,
तेरे अंचल की छाया में
छिपी रहूँ निस्प्रह, निर्भय ,
कहूँ—- दिखा दे चंद्रोदय !!
——— प्रसिद्ध कवि सुमित्रानंदन पंत
( संकलित )
——– राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !