” मेरी इक छोटी सी कोशिश… “

मेरी  इक  छोटी  सी  कोशिश  तुझ  को  पाने  के  लिए

बन   गई  है  मसअला    सारे   ज़माने   के    लिए

रेत  मेरी  उम्र  ,  मैं  बच्चा  ,   निराले   मेरे   खेल

मैंने   दीवारें   उठाई   हैं  ,   गिराने   के    लिए

आसमां  ऐसा   भी  क्या  ख़तरा  था  दिल  की  आग  से

इतनी  बारिश  एक  शोले  को  बुझाने   के    लिए

छत  टपकती  थी  अगरचे  फिर  भी  आ  जाती थी नींद

मैं  नये  घर  में   बहुत    रोया    पुराने   के     लिए

देर तक  हंसता  रहा  उन  पर    हमारा  बचपना

तज़रबे  आये  थे    संजीदा     बनाने   के   लिए

वक़्त  होठों   से  मिरे  वो  भी  खुरच  कर  ले  गया

इक  तबस्सुम  जो  था  दुनिया   को  दिखाने  के  लिए  !

(  संकलित   )

 

——–  राम  कुमार  दीक्षित  ,  पत्रकार   !

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *