वो लोग मेरे बहुत प्यार करने वाले थे
गुज़र गए हैं जो मौसम गुजरने वाले थे
नई रुतों में दुखों के भी सिलसिले हैं नये
वो ज़ख़्म ताज़ा हुए हैं जो भरने वाले थे
ये किस मुक़ाम पे सूझी तुझे बिछड़ने की
कि अब तो जा के कहीं दिन संवरने वाले थे
हज़ार मुझसे वो पैमान–वस्ल करता रहा
पर उस के तौर— तरीक़े मुकरने वाले थे
तमाम रात नहाया था शहर बारिश में
वो रंग उतर ही गए जो उतरने वाले थे
उस एक छोटे से क़स्बे पे रेल ठहरी नहीं
वहाँ भी चंद मुसाफिर उतरने वाले थे !!
( संकलित )
——- राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !