” ऐसी न देखी सुनी सजनी “

ऐसी  न  देखी  सुनी  सजनी

धनी  बाढ़त  जात  वियोग  की  बाधा   !

त्यों  ‘ पद्माकर  ‘  मोहन  को  ,

तब  तें  कल  है  न  कहूँ  पल  आधा   !

लाल  गुलाल  घलाघल  में  ,

दृग  ठोकर  दै  गयी  रूप  अगाधा   !

कै  गई  कै  गई  चेटक — सी  ,

मन  लै  गई  लै  गई  लै  गई  राधा  !!

व्याख्या:—–  किसी स्त्री के वियोग में इस प्रकार की निरंतर बढ़ती हुई बेचैनी मैंने  पहले  कभी न तो देखी ही है और न कभी सुनी ही है  ! पद्माकर  कवि कहते हैं कि राधा से बिछुड़ने पर श्रीकृष्ण को आधे क्षण के लिए शांति नहीं मिल रही है  ! लाल गुलाल के ढेर में अगाध रूप— संपन्न राधा अपनी आँखों से ठोकर मार गई हैं  , जिससे वह गुलाल सर्वत्र उड़– उडकर व्याप्त हो गया है, अर्थात श्रीकृष्ण का सर्वांग प्रेम के रंग से रंजित हो गया है  ! राधा वहाँ से क्या गई हैं  ,  वह तो श्रीकृष्ण के मन को जादू से वशीभूत  करके अपने साथ ले गई हैं  !

———  प्रसिद्ध कवि  पद्माकर

(  संकलित  )

 

———-  राम कुमार  दीक्षित  , पत्रकार   !

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