” ख़ुद को सज़ा देता हूँ “

रहकर  खामोश  ख़ुद  को  सज़ा  देता  हूँ

बेहद  गुस्से  में  तो  बस  मुस्करा  देता  हूँ

 

सब  नाराज़  होकर  क्यों  जुदा  हैं  मुझसे

कहते  हैं  लोग  मैं  आईना  दिखा  देता  हूँ   !

 

क्यूँ  वंचित  रह  गया  उनके  नफरत  से  भी

अक्सर  ये  सोचकर  आँसू  बहा  देता  हूँ   !

 

फूलों  की  अब  नहीं  है  चाह  मुझको  यारों

काँटों  से  भी  अब  रिश्ते  मैं  निभा  देता  हूँ   !

 

मिल  जाए  आसरा  भी  ज़रा  रातों  को

अक्सर  शाम  होते  ही  दीया  बुझा  देता  हूँ   !!

( संकलित  )

 

———  राम  कुमार  दीक्षित  ,  पत्रकार   !

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