तुम सभ्य तो हुए नहीं
नगर में बसना
भी तुम्हें नहीं आया !
एक बात पूँछूँ— उत्तर दोगे ?
तब कैसे सीखा डसना —
विष कहाँ से पाया ?
प्रसिद्ध कवि अज्ञेय जी को समझने के लिए गहरा उतरना पड़ता है ! यहाँ वह संबोधित साँप को कर रहे हैं, पर व्यंग मनुष्य पर कर रहे हैं ! शहरी मनुष्य पर जो स्वयं को बहुत सभ्य समझता है !
सामान्य तौर पर हम मानते हैं कि साँप का काम डसना है, पर सच देखो तो ड़सता कौन है ?
शहरी मनुष्य दूसरे के कंधे पर पाँव रखकर, मतलब उसे खत्म करके, ऊपर चढ़ जाता है ! निज स्वार्थ हित कुछ भी कर सकता है वह ! स्वार्थ सध जाने पर उसे रास्ते से हटा सकता है , बिना किसी अपराध बोध के !
. … अज्ञेय जी आगे कहते हैं कि सांप और धूर्त मनुष्य , इन दोनों में से धूर्त मनुष्य अधिक खतरनाक होता है ! साँप तो चलता ही टेढ़ा है और आप उससे बच कर निकल सकते हो ! परन्तु एक धूर्त मनुष्य सीधा ही चलता रहता है और आपको जरा सा भी असावधान पाकर वह एकदम पलट कर आपको डस लेता है !
———- प्रसिद्ध कवि अज्ञेय जी
( संकलित )
——— राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !