” साक़ी “

अरे, ढाल दे, पी लेने दे  ! दिल भरकर  प्यारे  साक़ी

साध  न रह जाए कुछ इस छोटे  से  जीवन  की  बाक़ी

 

ऐसी  गहरी  पिला  कि  जिससे  रंग  नया  छा   जावे

अपना  और  पराया  भूलूं  , तू ही  एक  नज़र   आवे

 

ढाल- ढालकर  पिला  कि जिससे मतवाला होवे संसार

साक़ी  ! इसी  नशे में कर लेंगे  भारत माँ  का  उद्धार

——–    सुभद्रा कुमारी चौहान

( संकलित  )

——- राम  कुमार  दीक्षित  ,  पत्रकार   !

 

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