खो गए जो स्वप्न सारे
ला सकोगे क्या उन्हें फिर खोज हृदय समीप
ओ गगन के जगमगाते दीप
यदि न मेरे स्वप्न पाते
क्यों नहीं तुम खोज लाते
वह घडी चिर शान्ति दे जो पहुँच प्राण समीप
ओ गगन के जगमगाते दीप !
यदि न वह भी मिल रही है,
है कठिन पाना– सही है ,
नींद को ही क्यों न लाते खींच पलक समीप ?
ओ गगन के जगमगाते दीप !
——- प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय ” बच्चन ”
( संकलित )
——— विजय दीक्षित , बेहटा , लखनऊ !