बोली इसका पेट भरा है !
और फूट कर रोया जब
तब बोली नाटक है नखरा है !
जब गुमसुम रह गया , लगाई
तब उसने तोहमत घमंड की
कभी नहीं वह समझी इसके
भीतर कितना दर्द भरा है !
दोस्त कठिन है यहाँ किसी को भी
अपनी पीड़ा समझाना
दर्द उठे तो , सूने पथ पर
पाँव बढ़ाना , चलते जाना !
——— प्रसिद्ध कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
( संकलित )
———— राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !