” चलते जाना…”

हंसा  ज़ोर  से  जब, तब  दुनिया

बोली  इसका  पेट  भरा   है   !

 

और  फूट   कर  रोया   जब

तब   बोली   नाटक  है   नखरा   है   !

 

जब  गुमसुम  रह  गया  , लगाई

तब  उसने  तोहमत  घमंड   की

कभी  नहीं  वह  समझी   इसके

भीतर  कितना   दर्द   भरा   है    !

 

दोस्त  कठिन  है  यहाँ  किसी  को  भी

अपनी  पीड़ा   समझाना

दर्द   उठे  तो  , सूने  पथ  पर

पाँव   बढ़ाना  ,  चलते   जाना   !

——— प्रसिद्ध कवि  सर्वेश्वर दयाल  सक्सेना

( संकलित  )

————  राम  कुमार  दीक्षित  ,  पत्रकार   !

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