” मन का ताप हरो “

मन  का  ताप  हरो

लेकर मुझे शरण में अपनी, भय से मुक्त करो

 

तृण– सा  मैं  उड़  रहा  भुवन  में

कभी  धरा  पर  , कभी  गगन  में

चिर— शंकाकुल  इस  जीवन  में

श्रृद्धा— ज्योति   भरो

 

ज्यों  तुलसी का  मानस  पढ़कर

तुमने  लिखा  सत्य  , शिव, सुन्दर ‘

वैसे  ही  मेरी  रचना  पर

अपनी   मुहर  धरो

 

मन  का  ताप  हरो

लेकर  मुझे  शरण  में अपनी, भय  से मुक्त  करो

—————– गुलाब खंडेलवाल

( संकलित  )

——– राम कुमार  दीक्षित  ,  पत्रकार  !