प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ ,
सात साल की बच्ची का पिता तो है !
सामने गियर से ऊपर
हुक से लटका रखी हैं
काँच की चार चूड़ियाँ गुलाबी
बस की रफ्तार के मुताबिक
हिलती रहती हैं…..
झुककर मैंने पूँछ लिया
खा गया मानो , झटका
अधेड़ उम्र का मुच्छड़ रोबीला चेहरा
आहिस्ते से बोला : हाँ सा’ ब
लाख कहता हूँ नहीं मानती है मुनिया
टाँगे हुए है कई दिनों से
अपनी अमानत
यहाँ अब्बा की नज़रों के सामने
मैं भी सोचता हूँ
क्या बिगाड़ती हैं चूड़ियाँ
किस जुर्म पे हटा दूँ इनको यहाँ से ?
और ड्राईवर ने एक नज़र मुझे देखा
और मैंने एक नज़र उसे देखा
छलक रहा था दूधिया वात्सल्य बड़ी– बड़ी आँखों में
तरलता हावी थी सीधे— सादे प्रश्न पर
और अब वे निगाहें फिर से हो गई सड़क की ओर
और मैंने झुककर कहा—-
हाँ भाई, मैं भी पिता हूँ
वो तो बस यूँ ही पूँछ लिया आपसे
वरना ये किसको नहीं भायेंगी ?
नन्ही कलाइयों की गुलाबी चूड़ियाँ !!
———– प्रसिद्ध कवि नागार्जुन
( संकलित )
——— राम कुमार दीक्षित, पत्रकार !