आओ , एक पथ के पथिक— से
प्रिय , अंत और अनन्त के
तम— गहन— जीवन घेर
मौन मधु हो जाए
भाषा मूकता की आड में
मन सरलता की बाढ़ में
जल— बिंदु सा बह जाए
सरल अति स्वछंद
जीवन , प्रात के लघुपात से
उत्थान— पतनाघात से
रह जाए चुप, निर्द्वंद् !
———– प्रसिद्ध कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
( संकलित )
——— राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !