” ऋषि की चतुराई “

एक राज्य में एक प्रसिद्ध ऋषि रहते थे जो लोगों के भाग्य बताते थे  ! सभी लोग आपस में ऋषि के कौशल की चर्चा करते थे  ! यह बात एक दिन राजा के कानों तक पहुँची ! राजा के मन में भी अपने भविष्य को जानने की लालसा हुई और उन्होंने अपने मंत्रियों को भेजकर पूरे आदर सत्कार के साथ ऋषि को अपने महल में लाने के लिए आमंत्रण भेजा  ! राजा के मंत्री  आदेशों के अनुपालन में ऋषि के पास पहुंचे और राजा के आमंत्रण के बारे में बताया और चलने के लिए आग्रह किया  !

ऋषि ने राजा के आमंत्रण को स्वीकार किया और चलने के लिए तैयार हो गये  ! ऋषि जब महल पँहुचे तब राजा ने उनका पूरे दिल से सत्कार किया और भोजन कराया  ! भोजन के बाद राजा ने ऋषि से आराम करने को कहा और राजा उनके कमरे से चले गये , बिना अपनी कोई बात रखे  ! ऋषि के आराम करने के बाद राजा उनके पास पहुँचे और अपने मन की बात सामने रखते हुए, अपने भविष्य के बारे में पूँछा   !

ऋषि ने राजा की जन्म कुंडली माँगी और उसे ध्यान से देखने के बाद राजा को बताया कि आपके जीवन में सब मंगलमय है और आगे सब कुछ अच्छा ही होगा  ! यह सब सुनकर राजा बहुत खुश हुए और ऋषि की झोली सोने चांदी से भर दी  ! राजा के दिमाग में अचानक से अपने दुर्भाग्य के बारे में जानने की लालसा होने लगी और ऋषि से उन्होंने दुर्भाग्य देखने को कहा  ! राजा के आदेश पर ऋषि ने राजा के भविष्य में दुर्भाग्य से जुड़ी सारी बातें बता दीं  !

राजा अपने बारे में कुटिल शब्दों को सुनकर ऋषि पर क्रोधित हो गया और चिल्लाने लगा  ! राजा ने अपनी तलवार उस ऋषि की गर्दन पर रखते हुए कहा कि तुम पाखंडी हो  ! यदि नहीं हो तो अब तुम मेरी मृत्यु का समय बताओ वरना मैं तुम्हारी गर्दन धड़ से अलग कर दूँगा  ! ऋषि यह समझ चुके थे कि दुर्भाग्य के बारे में जानकर राजा क्रोधित हो चुका है  ! अब ऋषि ने अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाये और राजा से कहा कि मेरी मृत्यु के ठीक एक घण्टे बाद आपकी मृत्यु हो जायेगी  ! यह बात सुनकर राजा थोड़ा हैरान हुआ और गर्दन से तलवार हटा ली  ! ऋषि की बात  से राजा सहम गया क्यों कि अगर उसने ऋषि को मार दिया होता तो उसके एक घण्टे  बाद ख़ुद भी मर जाता  ! इसके बाद राजा ने ऋषि से माफी मांगी और उन्हें जाने दिया  ! प्रसंग से सीख यही मिलती है कि यदि हम संयम से काम लें तो गंभीर परिस्थिति में भी बुद्धिमानी से समस्या का हल निकाला जा सकता है  !

 

———— राम  कुमार दीक्षित, पत्रकार  !