प्रपुणत मनोवैज्ञानिक सिगमंड फ्रायड छुट्टी के दिन अपने परिवार के साथ एक पार्क में घुमने गए ! लौटते समय देखा तो उनका बच्चा गायब था ! पति– पत्नी बातों में इतने मशगूल थे कि बच्चे का ध्यान ही नहीं रहा ! बच्चे को ना पाकर उनकी पत्नी काफी घबरा गयीं , लेकिन फ्रायड को जैसे कुछ हुआ ही ना हो ! वह एकदम निश्चिंत चले जा रहे थे ! फ्रायड को इस तरह निश्चिंत देखकर, उनकी पत्नी गुस्से में बोली , आप इस तरह चुप क्यों हैं ? देखिये ना, वह कहाँ गया ? क्या आपको उसकी चिन्ता नहीं है ?
फ्रायड ने उन्हें हिम्मत बंधाते हुए कहा , घबराओ नहीं , वह मिल जायेगा ! पत्नी ने खीजकर कहा , बिना खोजे, कैसे मिल जायेगा ? फ्रायड ने पूँछा , क्या तुमने उसे कहीं जाने से मना किया था ? पत्नी को थोड़ी देर सोचने के बाद याद आया कि उन्होंने बच्चे को फव्वारे के पास जाने से मना किया था ! फ्रायड बोले , वह निश्चित रूप से फव्वारे के पास ही होगा ! पत्नी ने कहा, तुम्हें यकीन है ?
फ्रायड ने कहा, पंचानबे फीसदी ! बच्चा वाकई फव्वारे के पास खडा था और पानी की उठती धार को मुग्ध होकर देख रहा था ! पत्नी के भीतर जिज्ञासा जगी कि आखिर फ्रायड ने यह कैसे पता लगाया कि बच्चा फव्वारे के पास ही होगा ? फ्रायड ने बताया , बच्चा वहीं जायेगा , जहाँ जाने के लिए उसे मना किया जायेगा ! इसी तरह उसे जिस काम को करने से रोका जायेगा ! वह उसे जानबूझकर करेगा ! फ्रायड ने आगे बताया कि मनोविज्ञान का यह सीधा सा नियम बच्चों पर ही नहीं , समान रूप से बड़ों पर भी लागू होता है ! मन को जिधर भी जाने से रोका जायेगा , मन पूरी ताकत से उधर ही भागेगा ! यह कथन भी सत्य है कि निषेध ही आमंत्रण है ! जहाँ कहीं भी लिखा होता है कि यहाँ झांकना मना है , वहाँ लोग अवश्य ही झाँक कर देखते हैं ! रेलवे स्टेशन या बस स्टेशन पर लिखा हुआ होता है कि यहाँ पान खाकर थूकना मना है , वहाँ पर लोग अवश्य ही पान की पिचकारी मारते हैं ! मन का खेल बड़ा निराला है ! इसको समझा बुझाकर ही वश में करने का प्रयास किया जा सकता है !
————- राम कुमार दीक्षित, पत्रकार !