घर के भीतर और घर के बाहर माताओं— बहनों का संघर्ष ना तो पुराने ज़माने में खत्म हुआ था और ना ही आज खत्म हुआ है ! किसी भी बहन– बेटी से पूँछों तो वह यही कहेगी कि अभी हम एक अलग किस्म का संघर्ष कर रहे हैं ! तमाम सरकारी योजनाएं वर्तमान समय में लागू हो गई हैं लेकिन महिलाओं में असुरक्षा का भाव अभी भी बना हुआ है !
अगर सरकारी आंकड़ों पर विश्वास किया जाए तो अपने देश में 37 करोड़ पुरुष कामकाजी हैं लेकिन कामकाजी महिलाएं सिर्फ 04 करोड़ हैं ! सरकार ने इसीलिए महिलाओं के लिए कई योजनाएं चलाई हुई हैं ! इन योजनाओं से महिलाओं को सुविधाएं तो मिल गयीं लेकिन महिलाओं का आत्मविश्वास अभी भी ड़गमगाया हुआ है ! घर के भीतर और घर के बाहर का संघर्ष बना हुआ है !
सरकारी योजनाओं से महिलाओं को मिलने वाले लाभ के कारण कई पुरुषों ने महिलाओं को फिर एक मशीन की तरह समझ लिया है ! यह अत्यंत दुःख की बात है कि पुरुषों ने माताओं– बहनों को वह सम्मान दिया ही नहीं, जिसकी वे अधिकारी हैं ! वास्तव में पुरुषों को अपने मन में परिवर्तन लाना होगा और महिलाओं को आदर एवं सम्मान देने में प्राथमिकता देनी होगी ! स्त्री मेरी माँ एवं मेरी बहन भी है ! जो भाव एवं सम्मान हम लोग अपनों को देते हैं, वही आदर तथा पवित्र भाव यदि हम सब महिलाओं के प्रति रखें तो महिलाओं के भीतर भी एक निर्भयता का भाव उत्पन्न हो जायेगा और यही महिलाओं का भाव समाज को उन्नति के मार्ग पर ले जायेगा ! हमें हर हाल में महिलाओं की सुरक्षा एवं उन्हें आदर / सम्मान देनें में कभी भी पीछे नहीं रहना चाहिए , तभी हमारा परिवार एवं पूर्ण समाज समृद्धिशाली एवं खुशहाल बनेगा !
———– राम कुमार दीक्षित, पत्रकार, पुणे !