एक व्यक्ति, महात्मा जी के पास आया और उसे अपना शिष्य बनाने की प्रार्थना की ! महात्मा जी ने उस व्यक्ति को एक गाय दी और कहा, ” वत्स, तुम इस गाय की सेवा करो और दूध का सेवन करो ! महात्मा जी ने इसके साथ ही गायत्री मंत्र सिखाकर जाप करने के लिए भी कहा ! कुछ दिनों के बाद शिष्य महात्मा जी से बोला, गुरुदेव, आपकी कृपा से बहुत आनंद है !
यह सुनकर महात्मा जी बोले, ठीक है ! संयोग से गाय कहीं खो गई ! घबराकर शिष्य ने महात्मा जी को अपनी व्यथा सुनाई ! यह सुनकर महात्मा जी बोले , यह भी ठीक है ! लेकिन कुछ दिनों के बाद वह गाय फिर मिल गई ! शिष्य को फिर दूध मिलने लगा और वह मंत्र का जाप करके आनंद में रहने लगा !
महात्मा जी के पास जाकर उसने संपूर्ण स्थिति का वर्णन किया ! महात्मा जी ने कहा, यह भी ठीक है ! शिष्य ने बड़े आश्चर्य भाव से पूँछा , गुरुदेव , यह क्या बात है ? जब गाय थी तो अपने कहा, ठीक है ! जब गाय खो गई, तब भी कहा, ठीक है और अब जब गाय दुबारा मिल गई है , तब भी अपने कहा, ठीक है ! महात्मा जी बोले , जीवन बिताने का यही सबसे उत्तम ढंग है ! जैसी परिस्थिति हो, उसको ठीक से समझकर और उसके अनुकूल अपने आपको ढाल लेना चाहिए ! इसी में जीवन जीने का आनंद सन्निहित है ! समय और परिस्थिति के अनुरूप अपने आप को बदलकर जीवन जीना ही मंगलमय जीवन का सार है !
———— राम कुमार दीक्षित, पत्रकार !