सिद्ध सन्त उड़िया बाबा नरौरा के पास गंगा तट पर एक कुटिया में रहकर ईश्वर की साधना किया करते थे ! एक दिन स्वामी अखंडानंद सरस्वती उनके सत्संग के लिए पहुंचे ! वेदांत जैसे गूढ़ विषय पर बातचीत के बाद स्वामी जी ने बाबा से प्रश्न किया, ” महाराज , एक साधारण व्यक्ति के कल्याण का सरल उपाय बताने की कृपा करें !
बाबा बोले, केवल जीभ पर नियंत्रण कर लेने मात्र से मानव का कल्याण हो सकता है ! जीभ पर नियंत्रण का अर्थ यही है कि हमें अपनी जुबान से कभी असत्य तथा कटु वचन न बोलने का संकल्प ले लेना चाहिए !
कुछ क्षण रुककर उन्होंने कहा, यदि हम सदैव सत्य बोलें, जीभ से विनम्र शब्दों का प्रयोग करें ! भगवान् का पावन नाम जपते रहें ! अपनी जीभ से किसी की निंदा न करें ! जीभ को स्वाद के प्रपंच में न डालकर सदा सात्विक भोजन करते रहें, तो न हमारा कोई शत्रु पैदा होगा और न चटपटे भोजन से हमारा स्वास्थ्य चौपट होगा ! केवल जीभ पर नियंत्रण करके ही हम संसार के अनेक प्रपंचों से मुक्ति पा सकते हैं !
बाबा जी के मुख से जीभ के अनूठे महत्व को सुनकर स्वामी जी उनके आगे नतमस्तक हो गये ! इस प्रसंग से हमें भी यही सीख मिलती है कि किसी से भी बोलते समय विनम्रता के साथ अपनी वाणी का प्रयोग करना चाहिए और कभी भी किसी को कटु वचन नहीं बोलना चाहिए ! सन्त वचन भी है कि ” ऐसी वाणी बोलिए , मन का आपा खोय ! औरन को शीतल करे , आपंहु शीतल होय ” ! हमें अपने मृदुल व्यवहार से दूसरों के हृदय में स्थान बनाने का प्रयास करते ही रहना चाहिए !
———— राम कुमार दीक्षित, पत्रकार , पुणे !