समर्थ गुरु रामदास का जीवन अनेक चमत्कारों से परिपूर्ण रहा है ! उन्होंने राजनीति शिष्टाचार और धर्म पर काफी लेखन कार्य किया था ! उनकी आध्यात्मिक कार्यस्थली पैठन रही , जहाँ वह प्रतिदिन धर्म सभा व संकीर्तन किया करते थे ! एक बार भजन कीर्तन के दौरान, एक सत्संगी ने आकर रामदास को सूचित किया, कि महाराज गाँव में आपकी पूज्य माताश्री आपकी याद में रो– रोकर अपनी आँखों की रोशनी खो चुकी हैं ! अब उनके दिन रोते हुए और आपको याद करते हुए गुज़र रहे हैं ! इतना सुनते ही रामदास पैठण से अपने गाँव की ओर निकल पड़े ! पूरे रास्ते अपनी माँ को याद करते हुए परमात्मा का स्मरण भी करते रहे !
गाँव पहुंचकर अपनी माँ की रुग्णता और उन्हें बिना आँखों के विचरण करते हुए देखकर रामदास द्रवित हो उठे ! उन्होंने अपने इष्ट को याद करते हुए अपनी माँ की आँखों पर हाथ फेरा ! राम नाम के सुमिरन के साथ–साथ माँ की आँखों में रोशनी भी आती गई और माँ को अब पूर्ण रूप से साफ— साफ दिखाई देने लगा ! प्रसन्न होते हुए माँ ने रामदास से इस चमत्कार का मर्म जानना चाहा तो रामदास प्रेम से बोले, ” मैं तो अपने प्रभु का दास हूँ ” ! वह जो मेरे द्वारा करवाना चाहते हैं, वही हो जाता है ! इसके बाद समर्थ रामदास ने रामकथा मराठी छंदों में रचकर अपनी माता को सुनाई !
———– राम कुमार दीक्षित, पत्रकार, पुणे !