एक धनी सेठ को सोने से तौला गया और सोने को गरीबों में बाँट दिया गया ! उसी गाँव में एक संत रहते थे ! सेठ ने उन्हें बुलवाया कि आकर वह भी कुछ सोना ले जाएं ! संत ने उत्तर दिया कि आपने अच्छा काम किया लेकिन मुझे सोने से क्या लेना देना ! सेठ के अभिमान को चोट लगी ! सेठ ने कठोर स्वर में कहा, सोने की किसे जरूरत नहीं होती ! संत ने कहा , मैं कभी दान नहीं लेता ? मेरा परमात्मा मुझे उतना देता रहता है , जितने की मुझे जरूरत होती है ! फिर भी आपका बहुत आग्रह है, तो तुलसी के पत्ते जितना सोना दे दीजिये ! इतना कहकर संत ने तुलसी के पत्ते पर राम– नाम लिखकर दे दिया !
सेठ का अहंकार अब और तीव्र हो गया ! सेठ बोला, आप मेरा मज़ाक उड़ा रहे हैं ! मैं तो आपकी मदद करना चाहता था ! संत ने कहा, ठीक है ! आप इस पत्ते की तौल का सोना मुझे दे दें ! सेठ ने तराजू के एक पलड़े में उस तुलसी के पत्ते को रखा और दूसरे पलड़े में सोना चढ़ाते गए , पर तुलसी के पत्ते वाला पलड़ा नहीं उठा ! यह दृश्य देखकर सेठ हक्का– बक्का रह गया ! उसने संत के चरणों में सिर झुकाकर कहा , महाराज मेरी धृष्टता को क्षमा करें ! अहंकार ने मेरी आँखों पर पर्दा डाल दिया था ! संत ने कहा , सेठ जी, यदि धन से अहंकार आता है, तो वह विष के समान बन जाता है ! धन से आदमी विनम्र बनता है, तो धन अमृत हो जाता है ! इस कहानी से हमें भी यही सीख मिलती है कि अहंकार धन अथवा किसी भी बात का नहीं होना चाहिए क्यों कि अहंकार व्यक्ति को छोटा बना देता है और विनम्रता व्यक्ति के व्यक्तित्व को ऊँचा उठा देती है ! अहंकारी व्यक्ति से लोग बचने की कोशिस करते हैं जबकि विनम्र व्यक्ति से लोग जुड़ने का प्रयत्न करते हैं !
——— राम कुमार दीक्षित , पत्रकार, पुणे !