राजा शत्रुदमन का पुत्र अरिदमन अत्यंत अहंकारी था ! उसमें करुणा, उदारता, सेवा, दया, सहानुभूति जैसे गुणों का सर्वथा अभाव था ! राजा भी उसके स्वभाव से परिचित थे !
अतः उन्होंने उसे एक सिद्ध महात्मा के पास स्वभाव– परिवर्तन के उद्देश्य से भेज दिया ! एक दिन महात्मा ने अरिदमन से एक पेड़ की पत्तियाँ तोड़कर लाने को कहा ! साथ ही आदेश दिया कि यदि पत्तियाँ कड़वी हों तो उन्हें न लाएं !
काफी समय लगाकर अरिदमन वापस लौटा, और महात्मा से बोला, ” महाराज, वह सभी पत्तियाँ कड़वी थी, पूजा योग्य नहीं थी ! इसलिए मैं उन्हें नहीं लाया ! महात्मा बोले, पुत्र ! ठीक, इसी प्रकार जीवन से भी सभी कड़वी चीजें फेंक देने योग्य होती हैं !
तुम भी अपने अन्दर से दोष– दुर्गुणों रूपी कड़वाहट को फेंक दो और सबके प्रति मधुर बन जाओ ! मधुर स्वभाव का व्यक्ति ही सम्मान का पात्र होता है ! उस दिन से अरि– दमन का कायाकल्प हो गया ! इससे हमें यही सीख मिलती है कि हमें भी सबके साथ मधुर व्यवहार रखना चाहिए ! संतों के बचन हैं कि ” ऐसी वाणी बोलिये, मन का आपा खोय, औरन को शीतल करे , आपहु शीतल होय ” ! हमें भी लोगों के साथ मृदुल व्यवहार रखना चाहिए क्यों कि इससे दूसरों को भी शान्ति मिलती है और स्वयं का मन भी प्रसन्न होता है ! इसलिए अपनी प्रसन्नता के लिए भी दूसरों के साथ मृदुल व्यवहार रखना ही चाहिए !
——— राम कुमार दीक्षित, पत्रकार, पुणे !