एक बार आचार्य विनोबा भावे अपने भूदान आंदोलन के दौरान गाँव की पाठशाला में ठहरे हुए थे ! दोपहर के समय कुछ शिक्षकों को नीयत तथा नसीब पर सीख दे रहे थे !
तभी एक बिलखता हुआ बालक उनके सामने आया और पेट पर हाथ लगाता हुआ जमीन पर लौटने लगा ! यह भूखा बालक है ! इसे कुछ भोजन दे दो ! अचानक ही किसी ने कहा तो एक युवक जो उस पाठशाला में नया ही नियुक्त हुआ था ! उसने करुणा से अपना खाने का डिब्बा उस बालक को दे दिया ! उस डिब्बे में दो रोटी और अचार था ! वह सब खा गया ! मटके से पानी पी कर वहीं एक दरी पर सो भी गया !
अब वह युवक अपना खाली डिब्बा देखने लगा ! उस समय तो गाँव की पाठशाला के आस पास कोई दुकान भी नहीं हुआ करती थी ! विनोबा भावे सहित सब एक दो पल खामोश थे कि एक युवती भागती हुई आई ! उसके एक हाथ में थाली थी जो ढंकी हुई थी ! पता चला कि युवती बालक की बुआ है और बालक के लिए हलवा– पूरी लेकर आई है ! सब कुछ जान लेने के बाद उस युवती ने अनुरोध किया कि वह युवक इस खाने को ग्रहण करे ! युवक को भी भूख लगी थी ! उसने आनंद से सब स्वीकार किया ! अब आचार्य विनोबा भावे बोले कि जिसकी नीयत में खोट नहीं है , उसका भाग्य भी अवश्य साथ देता है ! इससे हमें भी यही सीख मिलती है कि जब भी परमात्मा हमें किसी की मदद करने का अवसर प्रदान करें तो हमें भी दूसरों की मदद अवश्य करनी चाहिए !
———— राम कुमार दीक्षित , पत्रकार, पुणे !