” वस्तुओं के आधार पर महानता नहीं आंकी जाती “

राजा भोज दिनभर की व्यस्तता के बाद गहरी नींद में सोये हुए थे  ! स्वप्न में उन्हें एक दिव्य पुरुष के दर्शन हुए  ! भोज ने बड़ी विनम्रता से उनका परिचय पूंछा  ! वे बोले  , ” मैं सत्य हूँ  ”  ! मैं तुम्हें तथाकथित उपलब्धियों का वास्तविक रूप दिखाने आया हूँ  ! चलो मेरे साथ  !

राजा उत्सुकता और खुशी से उनके साथ चल दिये  ! भोज खुद को बहुत बड़ा धर्मात्मा समझते थे  ! उन्होंने अपने राज्य में कई मन्दिर, धर्मशालाएं, कुंये और नदी आदि बनवाये थे  ! उनके मन में इन कामों के लिए गर्व था  !

दिव्य पुरुष भोज को उनके ही एक शानदार बगीचे में ले गए और बोले  , तुम्हें इस बगीचे का बड़ा अभिमान है न  ! फिर उन्होंने एक पेड़ छुआ और वह ठूँठ हो गया  ! एक–एक करके सभी सुंदर फूलों से लदे पेड़ों को छूते गए और वे सब ठूँठ होते चले गए  !

इसके बाद वह उन्हें भोज के बनवाये एक स्वर्णजडित   मन्दिर के पास ले गए  ! भोज को वह मन्दिर अति प्रिय था  ! दिव्य पुरुष ने जैसे ही उसे छुआ, वह लोहे की तरह काला हो गया  !

यह देख राजा के तो होश उड़ गये  ! वे दोनो उन सभी स्थानों पर गए  , जिन्हें राजा भोज ने चाव से बनवाया था  ! दिव्य पुरुष बोले  , राजन, भ्रम में मत पड़ो  ! भौतिक वस्तुओं के आधार पर महानता नहीं आंकी जाती  ! एक गरीब आदमी द्वारा पिलाये गए एक लोटे जल की कीमत  , उसका पुण्य, किसी यशलोलुप् धनी की करोड़ों स्वर्ण मुद्राओं से कहीं अधिक है  !

इतना कहकर वे अंतर्ध्यान हो गए  ! राजा भोज ने स्वप्न पर गंभीरता से विचार किया और फिर ऐसे कामों में लग गए  , जिन्हें करते हुए उन्हें यश पाने की लालसा बिल्कुल नहीं रही  !

 

———- राम कुमार दीक्षित, पत्रकार, पुणे  !