संत शिरोमणि रविदास के पास उनका एक प्रेमी जमींदार वेश बदलकर जूते सिलवाने गया ! जूते सिलवाकर उसने उनको सौ गुना कीमत अदा करनी चाही लेकिन रविदास ने केवल वाज़िब दाम लेकर सब वापस कर दिया यह कहते हुए कि आपके संस्कार जमा करने के हैं !
संत ने कहा कि मुझे तो त्याग में जो आनंद रस मिलता है ! उसको मैं अभिव्यक्त ही नहीं कर सकता ! उनकी इसी संतोषी प्रवृत्ति तथा मधुर व्यवहार के कारण उनके संपर्क में आने वाले लोग बहुत प्रसन्न रहते थे !
संत रविदास ने साधु— संतों की संगति से पर्याप्त व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया था ! जूते बनाने का काम उनका पैतृक व्यवसाय था और उन्होंने इसे सहर्ष अपनाया ! वे अपना काम पूरी लगन और मेहनत से करते थे ! वे अपना काम समय से पूरा करने में बहुत ध्यान देते थे ! प्रारंभ से ही रविदास बहुत परोपकारी और दयालु थे और दूसरों की सहायता करना उनका स्वभाव बन गया था ! साधु– संतों की सहायता करने में उनको विशेष आनंद मिलता था ! वे उन्हें प्रायः मूल्य लिए बिना जूते भेंट कर दिया करते थे ! हमें भी संतों से प्रेरणा लेकर हमेशा दूसरों की सहायता के लिए तत्पर रहना चाहिए !
——— राम कुमार दीक्षित , पत्रकार , पुणे !