आजकल सनातन शब्द को लेकर काफी विवाद चल रहा है, लेकिन यह सिर्फ गलतफहमी के कारण हो रहा है ! सनातन शब्द का धर्म से कोई लेनादेना नहीं है ! इसके बारे में बहुत भावुक होने की जरूरत नहीं है ! यह शब्द कोई नया नहीं है ! यह बहुत प्राचीन है ! वेदों में इसकी परिभाषा है ! सनातन अत एव पुनर्नवा, यानी सनातन वह है, जो निरंतर नया होता रहता है ! इसे समझने के लिए थोड़ा विस्तार से देखना होगा !
ध्यानी जनों ने जब जीवन को समझा– जाना, तब यह पाया कि बाहर से तो जन्म– मृत्यु का खेल चलता रहता हूँ , लेकिन उसके मूल में कुछ है , जो सदा बना रहता है ! अब अंतरिक्ष में जो यान भेजे जा रहे हैं , उसमें वह साफ होगा ! सूर्य की गति से प्रकाश और अंधेरा होता है, लेकिन यह खेल जिस अवकाश में होता है , वह शाश्वत है , यानी सनातन है ! जीवन हर पल मरता है और प्रतिपल पैदा होता है , जैसे एक सांस आती है और दूसरी बाहर जाती है !
आती सांस जन्म है और जाती सांस मृत्यु है ! यह जो लय है जीवन की , वही सनातन है ! वस्तुतः सनातन समयातीत होता है ! सनातन का मतलब होता है कि जिसमें नये और पुराने का कोई अर्थ ही नहीं है , जो सदा है !
धर्म सनातन है , लेकिन सनातन धर्म जैसी कोई चीज नहीं है , क्यों कि सनातन धर्म का तो मतलब होगा कि कुछ सामयिक धर्म भी है ! सनातन धर्म का मतलब होगा कि कुछ क्षणिक धर्म भी है, लेकिन ऐसा नहीं है ! धर्म का होना ही सनातन है अर्थात जो निरंतर नया होता रहता है, वही सनातन है !
——– राम कुमार दीक्षित , पत्रकार , पुणे !