ऐसा कहा जाता है कि श्री राम ने ब्राह्मणों को अपने हिस्से की धरती दान की थी ! वैसे तो श्री राम आभूषण, धन, वैभव की वस्तुएँ खुले हाथ बांटा करते थे लेकिन भूमि दान करने में उनकी विशेष रुचि थी ! एक बार किसी ने श्री राम से पूँछा था कि आप भूमि दान क्यों करते हैं ?
श्री राम का मानना था कि उस धरती पर लोग चलेंगे तो मुझे याद किया करेंगे ! इसके पीछे श्री राम का अहंकार नहीं था ! वह चाहते थे कि लोग मेरे आचरण से कुछ सींखे ! यहाँ जो हम लोगों के काम की बात हमारे हाथ लग रही है, वह यह है कि ” धरती, श्री राम के चरण और हमारा हृदय, इन तीनों का तालमेल बैठाया जाए ! इसलिए सवेरे— सवेरे उठें और कुछ कदम चलें तो अपने हर कदम पर परमात्मा का नाम जरूर लें !
परमात्मा का स्मरण यदि सुबह– सुबह ही किया जाता है तो यह दिनभर हमारे आचरण को नियंत्रित करेगा और हमको सनमार्ग पर ले जायेगा ! विदा होते समय निषाद राज ने जो किया वो एक सबक है ! ” चरन नलिन उर धरि गृह आवा , प्रभु सुभाउ परिजननिन सुनावा ” फिर भगवान् के चरण कमलों को हृदय में रखकर वह घर आया और आकर कुटुंबियों को प्रभु का स्वभाव सुनाया ! वैसे तो परमात्मा का स्मरण निरंतर करते रहना चाहिए लेकिन प्रयास यह भी करना चाहिए कि जब भी हम पैदल चल रहे हों तो हर कदम के साथ परमात्मा का नाम मानसिक जप के रूप में चलता रहे ! परमात्मा के निरंतर स्मरण से हमें एक दिन यह अनुभूति होगी कि परमात्मा हमारे बहुत ही निकट हैं !
——— राम कुमार दीक्षित , पत्रकार , पुणे !