” परिवारों को बचाने के लिए बुजुर्गों के सानिध्य में रहें “

आजकल माता– पिता  ने बच्चों के लालन– पालन का ढंग ऐसा कर लिया है कि उनके पढ़े– लिखे बच्चे उनसे दूर हो ही जायेंगे  ! बच्चे दूर चले जाएं अपने भविष्य के लिए तो माता– पिता को दुख नहीं होता  ! तकलीफ तब शुरू होती है, जब बच्चे दूर जाकर अपने माता– पिता को भूल जाते हैं  ! इससे भी बड़ी तकलीफ तब होती है  , जब बच्चे साथ में रहकर भी ठीक से ध्यान नहीं देते  ! कई परिवारों में एक छत के नीचे बच्चे बुजुर्गों से कई– कई दिन तक नहीं मिलते  ! बच्चे बाहर की दुनिया में जितनी भाग– दौड़ करते दिख रहे हैं   और इस वजह से  वे अशांत  हैं, परेशांन हैं  !

बच्चों को एक छोटा सा फार्मूला समझ में नहीं आ रहा है कि थोड़ी देर भी अगर ये बड़े– बूढों के पास बैठ जाएं तो उनके शरीर से निकलने वाली तरंगें  , इनका भाग्य बदल सकती हैं  ! इसी लालच में कम से कम अपने घर के बुजुर्गों की  भावदशा का  सानिध्य प्राप्त कर लें  ! माता– पिता  , पति– पत्नी और संतान, इस त्रिकोण को जितना मजबूत और समझ से भरा रखा जायेगा, उतना ही घर में शांति और आनंद का आगमन होगा  ! बुजुर्गों के सानिध्य में रहने से परिवार में शांति आयेगी और आजकल जितना परिवारों में बिखराव नज़र आ रहा है,  उसमें कमी आयेगी  ! परिवारों में खुशहाली ही जीवन का लक्ष्य होना चाहिए  !