” सत्संग हमारे बुरे कर्मों के बीज को खत्म करता है “

कुछ कर्म बदले जा सकते हैं और कुछ नहीं  ! जैसे हलवा बनाते समय चीनी या घी की मात्रा यदि कम हो तो उसे ठीक किया जा सकता है  ! लेकिन हलवा के  पक  जाने पर उसे फिर से सूजी में नहीं बदला जा सकता  ! मठ्ठा यदि अधिक खट्टा हो तो उसमें दूध या नमक मिलाकर पीने लायक बनाया जा सकता है  !

पूर्व जन्मों के कर्म बदले नहीं जा सकते  ,  जबकि संचित कर्मों को आध्यात्मिक अभ्यास द्वारा बदला जा सकता है  ! सत्संग बुरे कर्मों के बीज को खत्म करता है  ! जब आप किसी की प्रंशसा करते हैं  , तब उसके अच्छे कर्म ले लेते हैं  ! जब आप किसी की बुराई करते हैं  , तब आप उसके बुरे कर्मों के भागीदार बनते हैं  !  इसे समझ लीजिये और अपने अच्छे एवं बुरे दोनों ही कर्मों को परमात्मा को समर्पित करके मुक्त हो जाइये  !

कर्म के ढंग बहुत ही निराले हैं  ! आप इसे जितना अधिक समझेंगे  , उतने ही अधिक चकित हो जायेंगे  !  कर्म ही लोगों को मिलाता है और अलग भी करता है  ! किसी को यह दुर्बल बनाता है और किसी को अधिक शक्तिशाली  ! कर्म ही किसी को धनी बनाता है और किसी को निर्धन  ! संसार के सभी संघर्ष, चाहे वे जो भी हों, कर्म के ही बंधन हैं  ! यह रहस्य सभी तर्कों और समझ से परे है  ! ज्ञान हमें ऊपर उठाता है और घटनाओं एवं व्यक्तियों में उलझने नहीं देता  ! हमें आत्मा की ओर अग्रसर करता है  ! केवल मनुष्य– जीवन में ही कर्मों से मुक्त होने की योग्यता है और सच यह भी है कि कुछ संख्या में ही व्यक्ति इससे मुक्त भी होना चाहते हैं  !  इससे यह तो स्पष्ट हो जाता है कि कर्म करते समय हमें अत्यधिक सावधान रहने की जरूरत है  !

 

———– राम कुमार दीक्षित  , पत्रकार ,  पुणे  !