घर– परिवार में नई पीढी वहन करे और पुरानी सहन करे , तो स्वर्ग ढूंढने के लिए कहीं और जाने की जरूरत नहीं है ! अपनी ही छत के नीचे स्वर्ग जैसा सुख मिल जायेगा ! गलत तब होता है, जब घरों में पीढियाँ आमने– सामने टकराने लगती हैं !
अंगद ने भगवान् श्री राम से एक शब्द बोला था और वह शब्द हमारे बड़े काम का है ! प्रभु श्री राम जब वानरों को विदा कर रहे थे , तो अंगद जाना नहीं चाहते थे ! तब अंगद ने कहा था कि ” नीचि टहल गृह के सब करहिउँ , पद पंकज बिलोकि भव तरिहिउँ ” ! मैं घर की सब नीची से नीची सेवा करूँगा और आपके चरण कमलों को देख– देखकर भवसागर से तर जाऊंगा ! मुझे अपने घर में अपने साथ रहने दीजिये !
हम अपने घर में एक दूसरे के साथ प्रेम से रहें , इसके लिए नीची से नीची सेवा का अर्थ यह नहीं है कि हम आचरण से गिर जाएं , बल्कि अपने अहंकार को गिरा देना है ! हमें याद रखना चाहिए कि कांटे हाथ– पैर में ही नहीं लगते , दिल में भी चुभ जाते हैं और घरों में ऐसा बहुत होता है ! इसलिए घर— परिवार में कोई काम छोटा नहीं होता है ! यदि हम अपना अहंकार त्याग कर घर में काम करें तो उसका परिणाम आनंद के सिवा कुछ नहीं होगा ! इसलिए घर में हंसी– खुशी और मिल— जुलकर रहने के लिए अहंकार को अपने से दूर करना ही होगा !
————- राम कुमार दीक्षित , पत्रकार , पुणे !