एक बहुत ही सफल उद्योगपति से जब पूंछा गया कि आपने विज्ञान व तकनीक का भरपूर प्रयोग किया, लेकिन धर्म–कर्म में आपकी रुचि बनी हुई है , सफलता का यह संतुलन आपने कैसे बनाया ? उनका उत्तर था, मनुष्य के जीवन में कोई न कोई खूँटी अवश्य होनी चाहिये , जिस पर वह अपनी बेचैनी, निराशा, थकान, उदासी को टांग सके ! उनका कहना था कि भारत का एक प्रसिद्ध मन्दिर मेरे लिए वही खूँटी है ! मैं दुनिया के किसी भी कोने में रहूँ, पर वहाँ साल में एक– दो बार जरूर पहुँच जाता हूँ और ऐसा लगता है कि मैंने अपनी सारी नकारात्मक सोच वहाँ उतार दी और सकारात्मक सोच वहाँ से ले ली !
प्रबंधन की भाषा में इसको अनहुवड होना कहते हैं ! शास्त्रों में इसी के लिए लिखा है कि आत्मा और शरीर के बीच स्पेस जितना अधिक बनाएंगे , उतनी जल्दी शांत हो जायेंगे ! यह जो खूँटी है यह कोई व्यक्ति, कोई स्थान भी हो सकता है ! तो क्यों न यह प्रयोग किया जाए कि वर्ष में तीन– चार बार किसी ऐसे व्यक्ति या स्थान पर आते– जाते रहें, मिलते— जुलते रहें जो हमारी नकारात्मक सोच को सकारात्मक सोच में बदल दे ! जैसे ही हम किसी दूसरे व्यक्ति या स्थान से ऊर्जा लेते हैं तो हम नकारात्मक सोच से बच जाते हैं और एक नई सकारात्मक सोच हमारे जीवन में आ जाती है ! इसलिए हम अपने जीवन में ऐसे व्यक्ति या स्थान को जरूर खोजें, जो हमारे जीवन को एक नई सकारात्मक सोच से लबालब भर दे !
——– राम कुमार दीक्षित , पत्रकार, पुणे !