उम्र के चार पड़ाव होते हैं और चारों पड़ावों में अशांति के केंद्र मौजूद रहते हैं ! हर उम्र में अशांति का रूप भी बदला हुआ रहता है ! जिज्ञासा करना मनुष्य का स्वभाव है ! बचपन की जिज्ञासा अबोध रहती है ! तरुणाई में जिज्ञासा सबसे अधिक रहस्यमयी होती है ! युवा अवस्था की जिज्ञासा में ललक होती है ! प्रौढ़ावस्था की जिज्ञासा में गांभीर्य आ जाता है और वृद्ध अवस्था में सही जिज्ञासा धैर्य में बदल जाती है !
जिज्ञासा ही अशांति में बदलती है ! एक नियम बनाया जा सकता है, जो भी गतिविधि करें, उसके बीच–बीच में सांस का प्रयोग जरूर करते रहें ! उदाहरण के तौर पर आजकल सबसे ज्यादा समय मोबाइल के साथ बीतता है ! जो लोग मोबाइल का प्रयोग कर रहे हों ! वे एक टाइम फिक्स कर लें ! प्रत्येक आधे– एक घण्टे बाद मोबाइल भले चलता रहे, पर अपनी आँख बंद करके आती जाती श्वांस को देखें और विचार शून्य सांस लें , फिर वापस वही क्रिया करें ! यह सांस का प्रयोग आपको शांति प्रदान करेगा ! इस समय हर उम्र के लोग अशांत हैं ! कुछ समय सांस को देखने की प्रक्रिया आपको गहन शांति प्रदान करेगी !
——– राम कुमार दीक्षित , पत्रकार , पुणे !