” कठपुतली न बन जाएं “

इंसान आदतों का पुतला है  ! फिर आदतें उसे कठपुतली बनाकर नचाती हैं  ! आदतों के तीन रूप होते हैं  ! प्रेरक, घातक और बेवजह की आदतों के मामले में आदमी हड़ — बड़, गड़बड़ और भड़भड करता चला जाता है  ! हड़ — बड़  , करने वाली आदत न सिर्फ उसे असफल बनाती है बल्कि अस्थिर और अशांत भी कर देती है  ! इसलिए विलंब और हड़बड़ी की अलग– अलग समझ होनी चाहिए  !

आदतों का दूसरा रूप गड़बड़ करने वाला है  ! शास्त्रों में इसे आसुरी वृत्ति कहा गया है  , मतलब दूसरे के गुणों में ही दोष ढूंढना  ! महाभारत के शकुनि और रामायण की मंथरा इसी आदत के जनक थे  ! इसको ही सिनीजीजम कहा गया है  ! आदत का तीसरा घातक रूप है भड़भडी  ! इससे मनुष्य को दूसरों से उलझने में मज़ा मिलता है  ! ऐसे इंसान का मन हमेशा उछल– कूद करता रहता है कि चलो भिड़ें किसी से  ! लूज़  टंग और शॉर्ट  टेंपर्ड  होना इस आदत का अंश है  ! हमारे भीतर कुछ प्रेरक आदतें भी हैं  ! उनको संभालकर प्रयोग में आने देना चाहिए  , जैसे परोपकार  , दूसरों के काम आना और परमात्मा की आराधना  !  अधिक से अधिक जीवन में प्रेरक आदतों को शामिल करना चाहिए  तभी हमारा जीवन सार्थक होगा  !

 

——— राम कुमार दीक्षित  ,  पत्रकार  , पुणे  !